Friday, 16 May 2025

बंदा बन्दा वैरागी और सिख

इतिहास को किस तरह से ट्वीस्ट कर बदला जाता है इसकी मिसाल है बंदा बैरागी उर्फ बंदा बहादुर अका लक्ष्मण दास।

1935 से पहले सिख इतिहास लिखित और ओरल ट्रेडिशन दोनो मे सिखो के लिये ये विलेन टाइप करेक्टर थे।

बंदा के समय मे सिखो ने उनके खिलाफ तत खालसा की स्थापना की थी। माता सुन्दरी कौर ( गुरू गोविन्द सिंह जी की पत्नी) ने बंदा के खिलाफ हुक्मनामा जारी किया था। 
सिखो ने बंदा को पकडवाने उन्हे हराने मे मुगलो की मदद की थी।

प्राचीन लेखो के अनुसार बंदा, बैरागी ट्रेडिशन को मानने वाला था। वो जनेऊ भी पहनता था। वो मासाहार के खिलाफ था, सात्विक था। उन्होने नीले रंग के कपड़े पहनने का विरोध किया और लाल/भगवा पहना इनीश्येट किया।

बंदा का लाडाइयों मे नारा ( स्लोगन) फतेह धर्म, फतेह दर्शन था। उसकी शादी भी उन पहाडी राजाओ के यहां की जिनकी गुरू गोविन्द सिंह जी से लगातार लडाईयां चलती रही। 

प्राचीन सिख लेखक और इतिहासकार तो बंदा के चरित्र तक पर ऊंगली उठा उसे बदनाम करते है। 

1925 तक SGPC ने महंतो से गुरूद्वारो को छीन लिया था। फिर रेहत मर्यादा बनाई गयी। सिख इतिहास नये सिरे से रचा गया। हिन्दू एलिमेंट इतिहास मे से हटाये गये। हिन्दुओ से दूरी बनाने और दिखाने के लिये गंगू ब्राह्मण जैसे काल्पनिक चरित्र का निर्माण किया गया। स्वर्ण मंदिर की नीव एक मुसलमान मिया मीर से रखवाना बताया गया। जबकि इससे पहले के इतिहास मे इन घटनाओ का जिक्र तक नही है। 

सिख बहादुर कौम दर्शाने के लिये पुराने बहादुर हिन्दु चरित्रो का सिख्खकरण किया गया । सती दास, मति दास जैसे ब्राह्मण चरित्र सिख बना दिये। जबकि उस समय तक तो खालसा का जन्म भी नही हुआ था। और इनके वंशज आज भी हिन्दू है।

1935 मे गैंदा सिंह ने बंदा बैरागी का बंदा सिंह बहादुर कर दिया। बंदा का गोत्र भारद्वाज था। कई प्राचीन इतिहासकारो लेखको ने बंदा को ब्राह्मण भी बताया है। जबकि गैंदा सिंह ने बंदा को भारद्वाज राजपूत लिखा है। 

फिर इन झूठो को सौइयो हजारो बार रिपीट किया गया। 

और हां कोई सिख ये भी नही कहेगा कि महाराजा रणजीत सिंह की वसीयत अनुसार उनकी आखिरी इच्छा कोहिनूर को जगन्नाथ पुरी को दान करने की थी । उनकी पत्नी उनकी चिता पर सती हुई थी।

आज बंदा बहादुर 
 उन्हे उनके परिवार सहित तत खालसा सिक्खों ने मुगलों से मिलकर पकडाया था।

हिन्दु इतिहास, शहीदो, उदासीनो और बैरागियो को निगलने के क्रम में इन्होने बंदा को भी पचा जाने की कोशिश की पर उनका ड्रेसिंग, जनेऊ पहनना, युद्ध भूमि मे स्लोग फतेह दर्शन, फतेह धर्म, इनके खुद के द्वारा पूर्व मे लिखा इतिहास, तत खालसा, माता सुन्दरी कौर जी का हुक्मनामा, बंदा का कभी भी अमृत नही चखना, खालसा सिख से अलग अपना भगवा झंडा बनाना आदि गले मे हड्डी जैसे फस गये।
इतिहास को किस तरह से ट्वीस्ट कर बदला जाता है इसकी मिसाल है बंदा बैरागी उर्फ बंदा बहादुर अका लक्ष्मण दास।

1935 से पहले सिख इतिहास लिखित और ओरल ट्रेडिशन दोनो मे सिखो के लिये ये विलेन टाइप करेक्टर थे।

बंदा के समय मे सिखो ने उनके खिलाफ तत खालसा की स्थापना की थी। माता सुन्दरी कौर ( गुरू गोविन्द सिंह जी की पत्नी) ने बंदा के खिलाफ हुक्मनामा जारी किया था। 
सिखो ने बंदा को पकडवाने उन्हे हराने मे मुगलो की मदद की थी।

प्राचीन लेखो के अनुसार बंदा, बैरागी ट्रेडिशन को मानने वाला था। वो जनेऊ भी पहनता था। वो मासाहार के खिलाफ था, सात्विक था। उन्होने नीले रंग के कपड़े पहनने का विरोध किया और लाल/भगवा पहना इनीश्येट किया।

बंदा का लाडाइयों मे नारा ( स्लोगन) फतेह धर्म, फतेह दर्शन था। उसकी शादी भी उन पहाडी राजाओ के यहां की जिनकी गुरू गोविन्द सिंह जी से लगातार लडाईयां चलती रही। 

प्राचीन सिख लेखक और इतिहासकार तो बंदा के चरित्र तक पर ऊंगली उठा उसे बदनाम करते है। 

1925 तक SGPC ने महंतो से गुरूद्वारो को छीन लिया था। फिर रेहत मर्यादा बनाई गयी। सिख इतिहास नये सिरे से रचा गया। हिन्दू एलिमेंट इतिहास मे से हटाये गये। हिन्दुओ से दूरी बनाने और दिखाने के लिये गंगू ब्राह्मण जैसे काल्पनिक चरित्र का निर्माण किया गया। स्वर्ण मंदिर की नीव एक मुसलमान मिया मीर से रखवाना बताया गया। जबकि इससे पहले के इतिहास मे इन घटनाओ का जिक्र तक नही है। 

सिख बहादुर कौम दर्शाने के लिये पुराने बहादुर हिन्दु चरित्रो का सिख्खकरण किया गया । सती दास, मति दास जैसे ब्राह्मण चरित्र सिख बना दिये। जबकि उस समय तक तो खालसा का जन्म भी नही हुआ था। और इनके वंशज आज भी हिन्दू है।

1935 मे गैंदा सिंह ने बंदा बैरागी का बंदा सिंह बहादुर कर दिया। बंदा का गोत्र भारद्वाज था। कई प्राचीन इतिहासकारो लेखको ने बंदा को ब्राह्मण भी बताया है। जबकि गैंदा सिंह ने बंदा को भारद्वाज राजपूत लिखा है। 

फिर इन झूठो को सौइयो हजारो बार रिपीट किया गया। 

और हां कोई सिख ये भी नही कहेगा कि महाराजा रणजीत सिंह की वसीयत अनुसार उनकी आखिरी इच्छा कोहिनूर को जगन्नाथ पुरी को दान करने की थी । उनकी पत्नी उनकी चिता पर सती हुई थी।
पंजाब और सिख इतिहास पर सबसे ऑथेंटिक इतिहास लिखने वाले हरिराम गुप्ता है उन्होंने समकालीन कालीन सोर्स को बता करके history of Sikhs बुक के रूप में इतिहास लिखा है
उन्होंने लिखा है कि गुरु गोविंद का बंदा बहादुर से मिलना कोई संयोग नहीं था 
गुरु गोविंद जब मुगलों से बुरी तरीके से हार कर पंजाब से पलायन कर रहे थे तो रास्ते में राजस्थान के फुलेरा में एक मंदिर में गए 
मंदिर के पुजारी जेत राम महंत ने उन्हें बताया था कि आपकी सहायता सिर्फ माधव दास नाम के राजपूत कर सकते हैं जो कि इस समय गोदावरी नदी के तट पर नांदेड़ में रह रहे जो बहुत बहादुर है और जिनके चर्चे पूरे महाराष्ट्र में है (पेज312)
गुरु गोविंद नांदेड़ गए
 गुरु गोविंद सिंह ने बन्दा बहादुर को प्रेरित किया और कहा कि मुसलमानों द्वारा औरतो की इज्जत लूटी जा रही है मथुरा के जाटों को बुरी तरीके से कत्ल कर दिया गया है राजस्थान के राजपूत दबा दिए गए हैं सतनामी जो बहुत दिन से औरंगजेब का विरोध कर रहे थे वह भी हार गए हैं चारों तरफ गाय की हत्या हो रही है मेरे बेटो को मार डाला गया है और आप राजपूत होकर संत बेस धारण करके रह रहे हो ,उठो अपने राजपूत होने के कर्तव्य का निर्वाह करो और ये संत भेष छोड़कर अपना वास्तविक राजपूत भेष , शस्त्र धारण करो और पापियों का संघार करो पेज (322 to 323)
उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है बन्दा ने मुगलो को उसी क्रूरता से दंड दिया जैसा कि वो हिन्दुओ को देते थे जो मस्जिद मुसलमान ने मंदिरों को तोड़कर बनाई थी वह सब उन्होंने जमीन पर गिरा दी
जिस तरह से मुसलमान सैनिक हाथ पैर काटकर हिंदुओं की हत्या करते थे वैसे बन्दा ने उनके हाथ पैर काट के हत्या की ,जैसे वह हिन्दू औरतो के साथ सलूक करते थे वैसे ही बन्दा ने उनकी औरतो के साथ किया,
भारत मे पहली बार मुसलमान सैनिकों को उससे भी बड़ा स्वाद मिला जो वह काफिरों के साथ कर रहे थे
महत्वपूर्ण बात है कि गुरु गोविंद सिंह ने इस काम के लायक अपने किसी सिख चेले को नहीं समझा बल्कि एक सनातनी लक्ष्मण देव उर्फ बन्दा वैरागी को दिया
जो जीवन में कभी भी सिख नहीं बने
उनकी पत्नी भी राजपूत राजा की ही बेटी थी
पर अफसोस है कि बाद में गद्दारी करके बंदा का साथ सिखो ने ही छोड़ दिया जिसका वर्णन भी हरिराम गुप्ता जी ने किया है
ref- history of sikh volume1 (1469-1708)
hariram gupta 
page 312 to 323

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