Saturday, 7 June 2025
भोजन के समय जल ग्रहण
🙁किसी ने भोजन के समय वाम हस्त से जल पीने में मना किया है; तदर्थ "वामहस्ते जलं धृत्वा मणिबन्धे निधाय च।भुञ्जमान: पिबन्वारि नोच्छिष्टं मनुरब्रवीत्।।" अन्यदपि "जलपात्रं तु नि:क्षिप्य मणिबन्धे च दक्षिणे। विप्रो भोजनकाले तु पिबेद्वामेन पाणिना।। धारया नोदकं पेयं पीत्वा दोषमवाप्नुयात्। जलपात्रेण तत्पेयमिति शातातपोब्रवीत्।।" भोजनकाल में जलपात्र को वाम हस्त से उठाकर दक्षिण मणिबन्ध पर रखे और वाम हस्त से शनै: जलपान करे। भोजनकाल में दक्षिणहस्त से जल पीना कुछ आश्वलायनों के लिए है, यथा "दक्षिणेनैव भुञ्जान उदकं पिबेत्" इति। जलपात्र को ऊपर उठाकर मुख में जलधारा से जल पीना दोषावह है। भोजनेतर काल में- "न पिबेन्न च भुञ्जीत द्विज: सव्येन पाणिना। नैकहस्तेन च जलं शूद्रेणावर्जितं पिबेत्।।" दायें हाथ से जल पीना चाहिए। देशशाखाद्यवच्छेदेन वैविध्य का बोध न हो तो चञ्चुचालन करते रहना कथमपि सही नहीं...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment