मदन चतुर्वेदी :-
मातृका-पूजन
शास्रों में गौर्यादि षोडशमात्रिका, सप्तधृत मातृका का उल्लेख आता है, मांगलिक असर पर इनके आवाहन पूजन के मन्त्र भी हैं जिनसे इनकी पूजा की जाती है। बुन्देलखण्ड में स्रियाँ किसी भी स्थान पर पुतलियों के चित्र बनाकर इनकी पूजा करती है। इसे माय पूजा कहा जाता है। माँगलिक अवसर पर कल्याण प्राप्ति और कार्य की निर्विघ्न सम्पन्नता के लिए कहीं गोबर तो कहीं मिट्टी अथवा शक्कर की पुतलियां बनाकर उनकी प्रतिष्ठा और पूजा की जाती है। विवाह आदि कार्य सम्पन्न हो जाने पर इन्हें विदा किया जाता है। कुल देवता और मातृका को मिला कर माय -बाबू की पूजा कहा जाता है अथवा निषेधपरक अर्थ में देवी-बाबू भी कहा जाता है। सहयोग के लिए कहा जाता है - हमारे उनके माय-बाबू एक ही है। असहयोग के लिए कहा जाता है - हमारे उनके देवी-बाबू अलग अलग हैं।
इस प्रकार बुन्देलखण्ड में आस्था और विश्वास के प्रतीक पशुपति कारसदेव के रुप में पूजित हैं तो कुल देवता और मातृका मायंबाबू के रुप में पूज्य है।
हरदौल
ओरछा नरेश वीरसिंह देव बुंदेला के सबसे छोटे पुत्र हरदौल का जन्म सावन शुक्ल पूर्णिमा सम्बत १६६५ दिनांक २७ जुलाई १६०८ को दतिया में हुआ था। जिस समय हरदौल का जन्म हुआ था उस समय दतिया में पुराना महल, किला आदि इमारतों का निर्माण नहीं हुआ था। रामशाह के शासन काल में बडोनी की जागीर वीरसिंह देव की थी तथा दतिया का इलाका रामशाह के बड़े लड़के संग्रामसिंह की जागीर में शामिल था। सन १५९५ में संग्रामसिंह की मृत्यु हो जाने के बाद उनका लड़का भरतशाह दतिया का जागीरदार हुआ। उसने दतिया नगर के उत्तर में स्थित एक पहाडी पर भरतगढ़ का निर्माण कराया जिसे बाद में वीरसिंह देव ने हस्तगत कर अपना निवास बना लिया था, इसी भरतगढ़ में हरदौल का जन्म हुआ था। हरदौल की माता का नाम गुमान कुंअरी था, जो वीरसिंह देव की दूसरी रानी थीं। हरदौल के जन्म कुछ दिनों के बाद उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। उनका पालन पोषण वीरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र जुझारसिंह की पत्नी चम्पावती ने किया। सन १६२८ में हरदौल का विवाह दुर्गापुर (दतिया) के दिमान लाखनसिंह परमार की बेटी हिमांचलकुंअरी के साथ हुआ। सन १६३० में उनके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम विजयसिंह था।सन १६०७ में ओरछा के तत्कालीन राजा रामशाह आगरा में जहांगीर की कैद में थे । सन १६०८ में जहांगीर ने उन्हें इस शर्त पर आजाद किया था कि वे ओरछा का राज्य वीरसिंह को देकर चंदेरी-बानपुर चले जायेंगे।
ओरछा का राज्य मिल जाने पर वीरसिंह देव ने हरदौल को एक सनद दी जिसमें उन्हें एरच का जागीरदार बनाया गया था। यह सनद राजा के रूप में उनकी पहली सनद थी। इस घटना की स्मृति में बुंदेलखंड की महिलायें आज भी यह लोकगीत गातीं हैं:-
दतिया के लला हरदौल, बुन्देला राजा एरच के।
मातृका-पूजन
शास्रों में गौर्यादि षोडशमात्रिका, सप्तधृत मातृका का उल्लेख आता है, मांगलिक असर पर इनके आवाहन पूजन के मन्त्र भी हैं जिनसे इनकी पूजा की जाती है। बुन्देलखण्ड में स्रियाँ किसी भी स्थान पर पुतलियों के चित्र बनाकर इनकी पूजा करती है। इसे माय पूजा कहा जाता है। माँगलिक अवसर पर कल्याण प्राप्ति और कार्य की निर्विघ्न सम्पन्नता के लिए कहीं गोबर तो कहीं मिट्टी अथवा शक्कर की पुतलियां बनाकर उनकी प्रतिष्ठा और पूजा की जाती है। विवाह आदि कार्य सम्पन्न हो जाने पर इन्हें विदा किया जाता है। कुल देवता और मातृका को मिला कर माय -बाबू की पूजा कहा जाता है अथवा निषेधपरक अर्थ में देवी-बाबू भी कहा जाता है। सहयोग के लिए कहा जाता है - हमारे उनके माय-बाबू एक ही है। असहयोग के लिए कहा जाता है - हमारे उनके देवी-बाबू अलग अलग हैं।
इस प्रकार बुन्देलखण्ड में आस्था और विश्वास के प्रतीक पशुपति कारसदेव के रुप में पूजित हैं तो कुल देवता और मातृका मायंबाबू के रुप में पूज्य है।
हरदौल
ओरछा नरेश वीरसिंह देव बुंदेला के सबसे छोटे पुत्र हरदौल का जन्म सावन शुक्ल पूर्णिमा सम्बत १६६५ दिनांक २७ जुलाई १६०८ को दतिया में हुआ था। जिस समय हरदौल का जन्म हुआ था उस समय दतिया में पुराना महल, किला आदि इमारतों का निर्माण नहीं हुआ था। रामशाह के शासन काल में बडोनी की जागीर वीरसिंह देव की थी तथा दतिया का इलाका रामशाह के बड़े लड़के संग्रामसिंह की जागीर में शामिल था। सन १५९५ में संग्रामसिंह की मृत्यु हो जाने के बाद उनका लड़का भरतशाह दतिया का जागीरदार हुआ। उसने दतिया नगर के उत्तर में स्थित एक पहाडी पर भरतगढ़ का निर्माण कराया जिसे बाद में वीरसिंह देव ने हस्तगत कर अपना निवास बना लिया था, इसी भरतगढ़ में हरदौल का जन्म हुआ था। हरदौल की माता का नाम गुमान कुंअरी था, जो वीरसिंह देव की दूसरी रानी थीं। हरदौल के जन्म कुछ दिनों के बाद उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। उनका पालन पोषण वीरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र जुझारसिंह की पत्नी चम्पावती ने किया। सन १६२८ में हरदौल का विवाह दुर्गापुर (दतिया) के दिमान लाखनसिंह परमार की बेटी हिमांचलकुंअरी के साथ हुआ। सन १६३० में उनके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम विजयसिंह था।सन १६०७ में ओरछा के तत्कालीन राजा रामशाह आगरा में जहांगीर की कैद में थे । सन १६०८ में जहांगीर ने उन्हें इस शर्त पर आजाद किया था कि वे ओरछा का राज्य वीरसिंह को देकर चंदेरी-बानपुर चले जायेंगे।
ओरछा का राज्य मिल जाने पर वीरसिंह देव ने हरदौल को एक सनद दी जिसमें उन्हें एरच का जागीरदार बनाया गया था। यह सनद राजा के रूप में उनकी पहली सनद थी। इस घटना की स्मृति में बुंदेलखंड की महिलायें आज भी यह लोकगीत गातीं हैं:-
दतिया के लला हरदौल, बुन्देला राजा एरच के।
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