Tuesday, 17 February 2015

शिव रूप

मदन चतुर्वेदी की कलम से:-
गुल्लू भेया
भगवान शंकर को कैलाश वासी माना गया है
आप लोगों ने तिब्बती लोगों का रहन सहन देखा होगा तिब्बत में एक जानवर होता है याक ये लोग आज उसी जानवर पर पूरी तरह से आश्रित है याक गाय का दूध ये लोग उपयोग करते है उसकी खाल को कपडे के रूप में प्रयोग लाते है उसके ऊन से रस्सी बनाते है जो वेहद गठीली होती है उसको माल वाहक के रूप में भी उपयोग करते है उसी पर वैठकर ये लोग आवगमन करते है। चारों तरफ वर्फ होने से चेहरा एसा हो जाता है जैसे राख मसली हो चलने के लिये एक या दो नोक वाली लकडी लेना पडती है जिसको रोप रोप कर आगे चलना पडता है नही ंतो कहीं भी वर्फ मंे दव या फिसल सकते है पर्वतारोही की पहली जीवन रेखा होती है रस्सी ये लोग उसको आज भी गले में डाले रहते है।
अब आओ भगवान शंकर के पास जिसके भयंकर रूपक गुल्लू ने निकाल रखे है।
याक की वालो बाली खाल वाघम्बर हो गयी लकडी त्रिशूल हो गयी गले में लटकी रस्सी नाग हो गयी और याक वैल नंदी वैल हो गया और हां रस्सी फिसले नही इसलिये पर्वतारोही रस्सी में वीच वीच में गांठ लगा लेते थे जिससे उसके सहारे चढने पर एक गांठ में पैर फसा कर सहारा देते थे और हाथ के पास वाली गांठ मजबूती देती थी उसे गले में डालने की कल्पना करो तो ये मुण्डमाल लगेगी शंकर कोई अंगुली मार नहीं थे जो मुण्डमाल गले में डालें तो गुल्लू भगवान शिव का यही रूप था उसको गहराई से जैसे चाहे समझते रहो और एक वात ़िऋषकेश  को आज भी शिव की ससुराल माना जाता है और भइया गुल्लू भगवान शिव एवं पार्वती की शादी पहली लव मैरिज थी जिसका प्रजापति दक्ष ने पुरजोर विरोध किया था पर पार्वती द्वारा खाना पीना छोडने से मैना ने जो उनकी मां थी मना लिया था ये फिर कभी ये बहुत रोचक एवं लम्बी कहानी है।

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