Monday, 16 February 2015

राम नाम

मदन चतुर्वेदी की कलम से :-
गोस्वामी जी कहते हैं‒‘जीह जसोमति हरि हलधर से’‒माता यशोदा की गोद में कन्हैया और बलदाऊ‒दोनों खेलते हैं । भगवान्‌ के भक्तों की जो जीभ है, वह यशोदाजी के समान है । उनकी गोद में ‘रा’ और ‘म’ रूपी कन्हैया और दाऊ भैया खेल रहे हैं । बालक को माँ की गोद में खेलने में आनन्द आता है । मनमें ‘भँवरे’ रूपसे ‘राम’ नाम है, जीभ पर राम-नाम ‘हरि हलधर से’ हैं । इसलिये भक्तलोग मन से भी ‘राम’ नाम और जीभ से भी ‘राम’ नाम जपते रहते हैं । मनसे, वाणी से, इन दोनों अक्षरों में तल्लीन होकर रात-दिन भजन करते हैं । किसी तरह की कोई इच्छा,तृष्णा और वासना उनमें रहती ही नहीं । इस प्रकार इन ‘र’ और ‘म’ अक्षरों की महिमा कहाँ तक कही जाय ! इनको लेने से ही इनका रस अनुभवमें आता है । इसलिये हर समय भगवन्नाम-जप करते ही रहना चाहिये ।

भजन करने में लगे हुए को भोजन करने में समय लगाना ठीक नहीं लगता है । अब स्वाद तो ले ही कौन ? क्या बढ़िया देखे और क्या घटिया ? प्राणों को रखना है, इसलिये अन्न की खुराक दे दो‒

कबीर छुधा है कूकरी तन सों दई लगाय ।
याको टुकड़ा डालकर पीछे हरि गुण गाय ॥
राम ! राम !! राम !!!

---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे

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