Sunday, 7 June 2015

राम कृष्ण परमहंस

कल बात चली थी दक्षणेश्वर मंदिर की

रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर था

जब रानी रासमणि ने इन्हें काली मंदिर का पुजारी रख लिया तो ये भाव दशा में आ जाते थे और भक्त और भगवान् एक रूप एकाकार हो जाते थे
इस मंदिर परिसर मे और देवताओ के भी भव्य मंदिर है इन्ही मे एक बगल के मंदिर में विष्णु मंदिर है जहाँ उस समय इनके बड़े भाई को पूजा का दायत्व दिया गया

काली मंदिर में रोज बकरो की बलि दी जाती थी गदाधर के बड़े भाई जिन्हें वो दादा कहते थे का मन कभी कभी बलि देख कर वितृष्णा से भर जाता था घृणा होती थी उन्हे
एक बार उन्होंने ये बात गदाधर से कही और कहा की तू ब्राह्मण है इसलिए काली मंदिर की पूजा छोड़ दे

परमहंस बोले दादा कैसी बात करते हो ये तो माँ को प्रसाद का अर्पण है

दादा क्रोधित हो बोले गदाधर तू बहुत समझदार हो गया अपने दादा से जवान लड़ाता है में तुझे श्राप देता हु की तेरे इसी मुँह से खून टपकेगा दादा को वाचा सिद्धि थी अतः बात पूरी होनी ही थी

गदाधर सत्र रह गए और माँ की इच्छा सोच चुप लगा गए

एक रोज माँ काली दादा के सपने में आई और बोली तू मेरे खाने को घिन लाता है और तूने गदा को श्राप भी दिया तू ये मंदिर छोड़ कर चला जा नहीं तो निर्वंश हो जायेगा दादा ने सपने पर कोई ध्यान नहीं दिया और एक एक कर उनके  चारों वच्चे काल कवलित हो गए जब तक ध्यान आता देर हो चुकी थी

इधर गदा की साधना ऊंचाई छू रही थी और श्राप का समय भी आना था तो माँ की कृपा
एक रोज ध्यान मैं प्राण वृह्मरंध्र में चले गए इतने मे गदा का ध्यान भंग हो गया और प्राण ने लौट कर तालु को छेद दिया और बस गदाधर के तालु से टपकते खून से उनका मुह भर गया
कुछ न समझ पाने पर गदा दादा के पास भागे रोते बोले दादा देखो आपने कहा था तो मेरे मुह से खून आ रहा है दादा भी घबरा कर रोने लगे
थोड़ी देर बाद खून आना बंद हो गया और गदाधर की कुण्डलिनी जाग्रत हो कर वो रामकृष्ण परमहंस हो गए

इतहास के अभी अभी के वो ऐसे जीवित संत थे जो कुण्डलनी शक्ति को अपने मन हिसाब से घुमाते थे
मदन चतुर्वेदी

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