Sunday, 7 June 2015

गोरा

रविन्द्र नाथ टैगोर ने एक उपन्यास लिखा है
गोरा
एक ब्राह्मण दंपत्ति के पुत्र का नाम है गोरा 7 फिट की लंबाई केरी आँखे गौरवर्ण वलिष्ठ शरीर

गोरा अपने हिन्दू धर्म पर बहुत गर्व करता है और ईसाई धर्म से बहुत चिढ़ता है उसकी कमियां निकालता अपने अकाट्य तर्क से  वादविवाद करता है
ये समय था जब बंगाल में ब्राह्मण वर्ग नष्टप्राय हो गया था और नया धर्म चला था #ब्रह्म समाज धर्म#
 इसमें ईसाई धर्म की अच्छी अच्छी बातें ड़ाल एक तरह से खिचड़ी धर्म बना लिया था
राजा राम मोहन राय
ईश्वरचंद विद्यासागर आदि सब इसी धर्म की थे

गोरा इनकी मीटिंग में जाता और तर्क के साथ आलोचना करता धीरे धीरे उसमे हिन्दू धर्म के प्रति एक कट्टरता आ गई समाज मे उसे हिन्दू धर्म का मुखिया बना दिया
एक ब्रह्म समाजी घर में उसका आना जाना था जहाँ वह एक लड़की से प्रेम करने लगता है पर लड़की की ब्रह्म समाजी मान्यताये उसे रास नहीं आती और दोनों में विरोध हो जाता है
इधर गोरा देखता है की उसका पिता उसके पूजा गृह या खाने के समय पहुचने पर अजीव से संकोच में पड़ जाता है पर गोरा इसे बुड्ढी सनक जान ध्यान नहीं देता
समय की बात गोरे का बाप एक बार बहुत बीमार पड़ता है और अपना अंत समय जान गोरे को एक राज बताता है की जब 1957 की ग़दर में अग्रेज भागे तो एक अंग्रेजन जो गर्भवती थी उसे छोड़ गए जो हमारे घर के सामने तुझे जन्म देकर मर गई और हम ने तुझे पाला तू हम लोगों का पुत्र नहीं है
बस गोरे की दुनिया बदल गई उसको सब धर्म उसके सब विचार धर्म की मान्यताये सब जमीं पर तिनका तिनका होती दिखी
और बस टैगोर उपन्यास समात कर देते है आप लोगों को सोचने को की धर्म क्या है
मदन चतुर्वेदी

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