Sunday, 7 June 2015

गऊ प्रेम

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महाराष्ट्र राज्यके सातारा जिलें में एक
तालुका है कराड,
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जिसके गाँव सिरम्बा गांव में एक
गोभक्त रहते थे । नाम था गोविन्द
दास जी महाराज ।
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गायों की सेवा करने में उन्हें बड़ा आनन्द
मिलता था ।
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उनका मठ गायों से भरा हुआ था ।
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हर गाय का उन्होने नाम रखा हुआ था ।
और वे उन्हें उसी नाम से पुकारते थे ।
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एक सुबह जब वे उठे उन्होंने देखा कि
उनकी गाएं चोरी हो गयी हैं ।
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वे बड़े दुखी हो गए । खाना पीना सब छूट
गया ।
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उन्होंने तालुका के तहसीलदार से फरियाद
की ।
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थाने में रिपोर्ट भी लिखवाई ।
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उन्होंने भाई गोविन्ददास को आश्वासन
दिया कि उनकी गायें ढूंढी जांएगी मगर
गोविन्द दास जी को संतोष नहीं हुआ ।
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वे स्वयं गाँव गाँव भटकते रहे और लोगों से अपनी
गाय के बारे में पूछते रहे मगर उनकी गायों का
कुछ पता नहीं चला किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं
हारी ।
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अचानक एक दिन वे बेलवड़ नामक गाँव
के हाट में घूम रहे थे,
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तभी उन्हें एक जगह अपनी गायें दिखाई
दी, जो खूंटे से बंधी थी ।
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उनकी आंखो से आंसू निकलने लगे ।
गाय भी उन्हें देखकर रंभाने लगीं ।
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वे दौड़े दौड़े तहसीलदार के पास पहुँचे
और कहा मेरी गाये मिल गयी हैं पर वे
चोरों के कब्जे में हैं ।
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तहसीलदार ने तुरन्त पुलिस भेजकर गायों
को मुक्त करवाया और चोरों को गिरफ्तार
किया ,
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मगर चोरों ने दावा किया कि ये गायें उन्हीं
की हैं ।
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उन्होंने कागज पुर्जे पेश किए ।
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तहसीलदार ने गोविन्ददास जी से कहा
कि क्या इस बात का कोई प्रमाण है कि
गायें उन्हीं की हैं ?
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अब गोविन्ददास जी के पास कोई कागज
आदि तो थे नहीं सो उन्होंने कहा कि गाएँ
स्वयं प्रमाण देंगी ।
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उनका मुझ पर प्रेम और स्नेह देखकर
आप स्वयं ही समझ जाएंगें ।
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तहसीलदार ने इसे साबित करने के लिए
कहा,
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तब गोविन्ददास जी ने अपनी गायों को
पुकारा,
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अरे ओ गंगा, जमना, कृष्णा,सावित्री
अनुसूया ।
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अरे ओ मेरी गोमाताओं मेरे पास आओ ।
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तभी सारी गाएं जो बाहर खड़ी थी दौड़कर
कचहरी में घुस आयी और गोविन्ददास जी
से चिपटकर उन्हें चाटने लगीं।
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यह देखकर सभी आष्चर्यचकित रह गए ।
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तब गोविन्ददास जी ने कहा कि आप
सब मेरे घर चलें और इन गायों का मुझ
पर मातृप्रेम देखें ।
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तहसीदार, पुलिस और चोर वगैरह सभी
उनके साथ घर की ओर चले ।
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घर पहुँचते ही बाहर खड़े होकर गोविन्ददास
जी ने फिर गायों को पुकारा
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अरे ओ मेरी माताओं सब अपनी जगह
चली जाओ ।
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तभी चामत्कारिक रूप से सभी गायें
दौड़कर घर में घुस गयीं और अपने
अपने खूंटे के पास जाकर खड़ी हो गयीं ।
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यह देखकर चोर उनके चरणों में गिर पड़े
और अपना अपराध स्वीकार करते हुए
गोविन्ददास जी से क्षमा माँगने लगे ।
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तहसीलदार महोदय यह दृष्य देखकर
पुलकित हो उठे और अपने निर्णय में
उन्होंने लिखा कि ऐसा स्वतः न्याय और
गोमाता का अदभुत प्रमाण मैंने आजतक
नहीं देखा ।
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जिस बेलवड़ गाँव के हाट बाजार में
गोविन्ददास जी को अपनी खोयी हुई
गांये मिली थीं, वहाँ आज भी यह कथा
प्रचलित है
मदन चतुर्वेदी

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