अमीर ख़ुसरो का एक टप्पा पढ़ रहा था बहुत सुन्दर लगा
आदमी जब संसार से जाता है उस समय का प्यारा चिंतन
बहुत रही बाबुल घर दुलहन, चल तोरे पी ने बुलाई
बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई
चार कहार मिलि डोलिया उठाई संग परोहत और भाई
चले ही बनेगी होत कहां है,नैनन नीर बहाई
अन्त बिदा हो चलिहै दुलहिन काहू की कुछ न बनी आई
मैजे खुसी सब देखत रहि गए मात पिता और भाई
मोरी कौन संग लगन धराई धन धन तेरी है खुदाई
बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्हीं नेह की मिसरी खिलाई
एक के नाम करि दीन्हीं सजनी पर घर की जो ठहराई
गुण नहि एक औगुन बहुतेरे कैसे नौशा रिझाई
खुसरो चले ससुरारी सजनी संग कोई नहि आई
मदन चतुर्वेदी
आदमी जब संसार से जाता है उस समय का प्यारा चिंतन
बहुत रही बाबुल घर दुलहन, चल तोरे पी ने बुलाई
बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई
चार कहार मिलि डोलिया उठाई संग परोहत और भाई
चले ही बनेगी होत कहां है,नैनन नीर बहाई
अन्त बिदा हो चलिहै दुलहिन काहू की कुछ न बनी आई
मैजे खुसी सब देखत रहि गए मात पिता और भाई
मोरी कौन संग लगन धराई धन धन तेरी है खुदाई
बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्हीं नेह की मिसरी खिलाई
एक के नाम करि दीन्हीं सजनी पर घर की जो ठहराई
गुण नहि एक औगुन बहुतेरे कैसे नौशा रिझाई
खुसरो चले ससुरारी सजनी संग कोई नहि आई
मदन चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment