Sunday, 7 June 2015

अमीर खुसरो

अमीर ख़ुसरो का एक टप्पा पढ़ रहा था बहुत सुन्दर लगा
आदमी जब संसार से जाता है उस समय का प्यारा चिंतन

बहुत रही बाबुल घर दुलहन, चल तोरे पी ने बुलाई

बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई

बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई

चार कहार मिलि डोलिया उठाई संग परोहत और भाई

चले ही बनेगी होत कहां है,नैनन नीर बहाई

अन्त बिदा हो चलिहै दुलहिन काहू की कुछ न बनी आई

मैजे खुसी सब देखत रहि गए मात पिता और भाई

मोरी कौन संग लगन धराई धन धन तेरी है खुदाई

बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्हीं नेह की मिसरी खिलाई

एक के नाम करि दीन्हीं सजनी पर घर की जो ठहराई

गुण नहि एक औगुन बहुतेरे कैसे नौशा रिझाई

खुसरो चले ससुरारी सजनी संग कोई नहि आई
मदन चतुर्वेदी

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