Sunday, 7 June 2015

हिप्पी और आचार्य प्रभुपाद

सन् 77 मे अमेरका मे ब्रटेन मे एक भयानक मंदी आई और यूवाओं मे एक अजीव वेचैनी और निराशा का वातावरण व्याप्त था उसी समय एक धर्म चला था ^हिप्पी धर्म ^ जो कुछ कुछ अपने यहाँ के ^चार्वाक^ धर्म जैसा था
#खाओ पियो मोज करो कोई पाप नहीं कोई पुण्य नही#
उसी के साथ उभरा था ^ पॉप संगीत ^
वीटल इसके सितारे थे समूह के समूह युवा नशे में मस्त वीटल की पॉप धुन में झूमते थे

परिवार नष्ट हो रहे थे
इसी समय अपने भारत से ^हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे^ की धुन गाते हुए पहुंचे ^ आचार्य प्रभुपाद^ इनकी एक तरह से भिड़ंत हुई वीटल और उसके निरंकुश ग्रुप के साथ

प्रभुपाद ने वीटल के अनेक ब्यङ्ग को झेलते हुए एक बार अपने सितार पर ^हरे रामा ^की घुन बजाने का अनुरोध किया
नशे मे धुत वीटल ने धुन बजाई और फिर ऐसी बजाई की उनका पूरा ग्रुप आचार्य का भग्त हो गया

वीटल ने बाद मे अपने अनुभव मे कहा की जैसे ही मेने ये धुन अपने गिटार से निकाली ऐसा लगा जैसे कोई चेतना मेरे सिर की और जा रही है मुझे बिलकुल उसी प्रकार का अनुभव हुआ जैसा मुझे हैरोइन के नशे के बाद होता था लेकिन एक अंतर था जब में हेरोइन के नशे से बाहर् निकलता तो अनंत विषाद मेरे मन को घेर लेता था जिसके कारण मुझे फिर नशे मे जाना पड़ता था
किन्तु इस धुन से जो नशा चढ़ता उसके उतरने के बाद एक चरम विश्रान्त मन होता था
वीटल फिर कई बार मथुरा आया उसका नशा अपने आप सदा के लिए छूट गया और अमेरका मे हिप्पी वाद समाप्त हुआ
मदन चतुर्वेदी

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