यह तो ईश्वर की अद्भुत कृपा रही जो बड़ी क्षति से बचाव हो गया।कर्क का मंगल हट चुका था।
नेत्र की रक्षा के लिए आज से चाक्षुष उपनिषद का तीन पाठ और आदित्यहृदय का एक पाठ आरम्भ कर दिया है।
अहिर्बुधन्य ऋषि को अनेक प्रणाम है जो आपने इस उपनिषद को जन कल्याणार्थ प्रकट किया।यह आधे पृष्ठ का उपनिषद है।मैने १९८६ से इसके चमत्कार को देखा है। इसका कोई भी व्यक्ति पाठ कर नेत्र जनित विपत्ति से बच सकता है। इसका पाठ कर सूर्य के १०८ नामों के उच्चारण के साथ कमल से अर्घ्य देने से नेत्र ज्योति की रक्षा होती है।यदि माता पिता नेत्र की कमजोरी से ग्रस्त हों तो इसके १२०० पाठ की चार आवृत्ति करके संतान को नेत्र रोग रहित उत्पन्न होने का संकल्प लें तो अपूर्व चमत्कार देखा गया है। चाक्षुष उपनिषद मनुष्य के लिए उपकारी और अत्यन्त सरल विधान है।
""" ॐ चक्षु: चक्षु: स्थिरो भव। """
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