Sunday, 22 June 2025

राम जन्म नक्षत्र

 श्रीराम के जन्मकालिक मास, दिन, तिथि में साम्य है परन्तु
 वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायणादि में "नक्षत्रेsदितिदैवत्ये" पुनर्वसु नक्षत्र, 
श्रीरामचरित मानस में ''नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता।।" अभिजित् नक्षत्र और 
सूरसारावली में "पुष्य नक्षत्र नौमी जु परम दिन लग्न सुद्ध सुमवार। प्रगट भए दशरथ गृह पूरन चतुर्व्यूह अवतार।।" पुष्य नक्षत्र लिखा है। कृपापूर्वक नक्षत्रभेद का रहस्य स्पष्ट करें....




यहां अभिजित् नक्षत्र नहीं, मुहूर्त है। अभिजित् तारा ध्रुव के निकट सबसे ऊपर है, अतः मध्याह्न में जब सूर्य सबसे ऊपर होता है तो उस समय के मुहूर्त को अभिजित् कहते हैं। उस मुहूर्त में किसी स्तम्भ के छाया शीर्ष की गति कुतुप आकार में होती है, अतः उसे कुतुप मुहूर्त भी कहते हैं। यहां तक कोई विरोध नहीं है। पर वाल्मीकि रामायण में अदिति नक्षत्र पुनर्वसु कहा है। इसकी पुष्टि में कहा है कि कर्क लग्न, चन्द्र तथा बृहस्पति का एक साथ उदय हो रहा था। कर्क राशि तथा पुनर्वसु तृतीय चरण का आरम्भ ९० अंश पर होता है। अतः किसी प्रकार से पुष्य नक्षत्र नहीं हो सकता। उस नक्षत्र में आगामी दिन भरत जी का जन्म कहा है।

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