जो बचा रहता है, वह क्या है? शोक या उत्सव? फ़र्श पर बची शीतलता पानी का शोक है या उसकी स्मृति का उत्सव?
मरण कहे बिना स्मरण का उच्चारण पूरा नहीं होता।
हम सिर्फ़ उन्हीं पलों को याद कर सकते हैं, जो मर चुके हैं।
ख़ालीपन हमारे भीतर कंपकंपाता है, फिर आहिस्ता-आहिस्ता थिर हो जाता है।
------- रोलाँ बार्थ।
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