उत्तर-किसी भी वर्णाश्रममें रहकर स्मृतियोंके आधारपर जो जीवन यापन करते हैं (इसीका शास्त्रोंमें विधान किया गया है) इसलिए हर व्यक्ति जन्मजात स्मार्त है क्योंकि वह स्मृतियोंका अनुसरण करता है। शिवजी की संप्रदायमें दीक्षितको शैव कहते हैं और विष्णुजी की संप्रदाय में दीक्षित हो जाए तो वह वैष्णव कहलाते हैं परंतु ये दोनों (शैव और वैष्णव भी) स्मार्त तो जन्म जाते हैं। इसलिए किसी की भी दीक्षा न ले तब भी वह स्मार्त है। कोई जरूरी नहीं है कि दीक्षा ली ही जाए, बहुत से लोग कुप्रचार करते हैं, कि दीक्षा नहीं ली जो उसका कल्याण नहीं होगा। ब्राह्मणों, क्षत्रिय, वैश्योंका यज्ञोपवीत होगा कि कल्याणका मार्ग खुल गया, वेदोंमें अधिकार हो गया, सभी देवताओंके पूजनका अधिकार हो गया, यही शास्त्रोंका सार है। ध्यान रहे हम दीक्षा लेनेके विरोधी नहीं है ना ही शैव और वैष्णवोंके।
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