(२) पश्चिम, मध्य, पूर्व के ३ सप्तसिन्धु (ऋग्वेद. १०/६४/८-९, १०/७५/१-८)। मध्य भारत के सप्त सिन्धु का नाम पूजा में कहा जाता है-गङ्गे यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु॥ इरावती २ हैं, मध्य भारत के पश्चिमी भाग में रावी है। किन्तु मुख्य इरावती थाइलैण्ड में हैं, जहां के हाथी को ऐरावत कहते थे (वायु पुराण, ३७/२५, ब्रह्माण्ड पुराण, २/३/७/३२६-३२७)।
(३) अश्वक्रान्ता, रथक्रान्ता, विष्णुक्रान्ता। श्रीविद्या साधना की शिवाकान्त द्विवेदी की टीका, भाग १ (पृष्ठ १२) में इसे भारत भारत का विभाजन माना है-
विष्णुक्रान्ता = भारत का उत्तर पूर्व भाग,
रथक्रान्ता = विन्ध्य से महाचीन (तिब्बत)
अश्वक्रान्ता-शाक्तमंगल तन्त्र के अनुसार विध्य से दक्षिण समुद्र। महासिद्धिसार के अनुसार करतोया (दक्षिण ओड़िशा की कटारधोया) नदी से जावा तक।
इन ३ क्रान्ताओं में ६४ प्रकार के तन्त्र प्रचलित हैं।
(४) शक्तिसंगम तन्त्र, पटल द्वितीय के अनुसार हादि, कादि, सादि खण्ड। इनसे अरबी में हाजी, काजी, सादी हुआ है।
ज्योतिष ग्रन्थों में मलाट, पलाट को पणाट, मणाट कहा गया है जो प्रायः शून्य देशान्तर (उज्जैन का) रेखा पर हैं। ब्राह्मी के ळ को देवनागरी में ण या ल जैस भी पढ़ते हैं, इस कारण २ प्रकार के नाम हैं। वन्द्य देश बंगाल हो सकता है जहां वन्द्योपाध्याय (बनर्जी) गये थे।
शून्य देशान्तर रेखा के अन्य स्थान हैं (प्रायः रेखा पर)-
लङ्कातः खरनगरं सितोरुगेहं, पाणाटो मिसितपुरी तथातपर्णी।
उत्तुङ्गस्सितवरनामधेय शैलो, लक्ष्मीवत्पुरमपि वात्स्यगुल्मसंज्ञम्॥१॥
विख्याता वननगरी तथा ह्यवन्ती, स्थानेशो मुदितजनस्तथा च मेरुः।
अध्वाख्यः करणविधिस्तु मध्यमाना-मेतेषु प्रतिवसतां न विद्यते सः॥२॥
(भास्कराचार्य-१, महाभास्करीय, २/१-२)
= लंका से क्रमशः उत्तर हैं- खरनगर, सितोरुगेह, पाणाट, मिसितपुरी, आतपर्णी, सितवर पर्वत, लक्ष्मीवत् वात्स्यगुल्म (लक्ष्मी स्थान को कोल्हापुर कहते हैं, उज्जैन रेखा के निकट थोड़ा पश्चिम) , विख्यात वननगरी, अवन्ती, स्थानेश, मेरु।
लङ्का कुमारी तु ततस्तु काञ्ची, मानाटमश्वेतपुरी त्वथोदक्।
(वटेश्वर सिद्धान्त, १/८/१)
२. हादिमतस्य प्रदेशाः
कादिदेशाः समाख्याता हादिदेशान् शृणु प्रिये । अङ्गबङ्गकलिङ्ग (1) श्चकालिङ्गः स्यात् सुवीरकः ॥ २५ ॥
...
द्वितीयः पटलः
काश्मीरश्चैव काम्बोजः सौराष्ट्रो मगधस्तथा । महाराष्ट्रो मालवस्तु नेपालः केरलस्तथा ॥ २६ ॥
चोलपाञ्चालगौडाश्च मलयालश्च सिंहलः । द्रविडः कोङ्कणश्चैव कार्णाटो लाट एव च ॥ २७ ॥
मलाटश्चैव पालाटः पाण्ड्यान्धकपुलिन्दकाः । हूणकौरवगान्धारविदर्भाः सविदेहकाः ॥ २८ ॥ बाह्रीकबर्बरौ देवि कैकयः कोशलोऽपि च ।
कुन्तलश्च किरातश्च शूरसेनश्च सेवनः ॥ २९ ॥ वनाटः टङ्कणश्चैव कोङ्कणे मत्स्यमद्रकौ । मैडसैन्धवसिन्धूत्थाः पार्श्वकीकौ ततः स्मृतौ ॥ ३० ॥ योर्जालयवनौ देवि जलजालन्धसाल्वलाः । सिन्धुश्च वन्द्यदेशश्च हादिपर्यायवाचकाः ॥ ३१ ॥
२१
हादिमत के प्रदेश- यहाँ तक 'कादि' पर्याय के देश कहे गये हैं। अब हे प्रिये ! 'हादि' पर्याय के देशों को सुनिए । १. अङ्ग, २. वङ्ग, ३. कलिङ्ग, ४. कालिङ्ग, ५. सुवीरक, ६. काश्मीर, ७. काम्बोज, ८. सौराष्ट्र, ९. मगध, १०. महाराष्ट्र, ११. मालव, १२. नेपाल, १३. केरल, १४. चोल, १५. पाञ्चाल, १६. गौड़, १७. मलय, १८. सिंहल, १९. द्रविड़, २०. कोङ्कण, २१. कार्णाट, २२. लाट, २३. मलाट, २४. पालाट, २५. पाण्ड्यान्धक, २६. पुलिन्दक, २७. हूण, २८. कौरव, २९. गान्धार, ३०. विदर्भ, ३१. विदेह, ३२. वाह्लीक, ३३. वर्वर, ३४. कैकय, ३५. कोशल, ३६. कुन्तल, ३७. किरात, ३.८. शूरसेन, ३९. सेवन, ४०. वनाट, ४१. टङ्कण, ४२. कोङ्कण, ४३. मत्स्य, ४४. मद्रक, ४५. मैड, ४६. सैन्धव, ४७. सिन्धूत्थ, ४८. पार्श्व, ४९. कीक, ५०. योर्जाल, ५१. यवन, ५२. जल, ५३. जालन्धर, ५४. साल्वल, ५५. सिन्धु एवं ५६. वन्द्यदेश- इतने देश हादि मत के पर्यायवाचक हैं ।। २५-३१ ।।
देशद्वयव्यवस्था तु पूर्वतन्त्रे प्रकीर्तिता । देशभेदं च विज्ञाय पर्यायक्रममाचरेत् ॥ ३२ ॥
इन दोनों देशों की व्यवस्था हम पूर्व में तन्त्र में कह आये हैं देश के भेद को जानकर तब वहाँ के पर्याय क्रम का अनुष्ठान करे ।। ३२ ।।
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